*ब्रज की बंसीधर: श्री कृष्ण कथा
बंसीधर श्री कृष्ण कथा
एक बार कंस राजा किहिन सपनौ,
देवकी सौं जनमियो अष्टम बालक,
तोहि कंस मारिहैं तज अपनौ।
सपना सुनि कंस भयविहाल,
देवकी वसुदेव कं कारागार डारि डाल्यो।
सप्तम बालक बलराम गोकुल में जान्यो,
अष्टम बालक जब जनम लिहो,
वसुदेव जी उए कौशीक नदी पार किहो।
आधी रात के बीच गौरा संग रचायो लीला,
नंद बाबा के घर कान्हा ने जनम धरो।
गोकुल में जब कान्हा खेल्यौ,
माखन चोरि कै ग्वाल बालकन संग खिलयो।
राधा रानी सौं रास रचायो,
बंसी की मधुर धुन सौं सबको मोहित किहो।
कालिया नाग सौं जब कन्हैया रार लगायो,
तब बंसीधर नन्दलाला उए नाग नाथियो।
गोवर्धन पर्वत उठायो उंगली पर,
सब ग्वाल बालकन को जीवन दियो।
कंस के पास जब मथुरा गयौ,
कंस को मारि उए कंस का बध कियो।
हरि की लीला अनंत, न जानै कोई पार,
उए लीला कौ वर्णन, आज ब्रज में सब कहैं पुकार।
श्री कृष्ण का जीवन लीला, सब के मन को भावै,
ब्रज की माटी, जहाँ हरि की कथा सौं हिय हरषावै।
कन्हैया, तेरी लीला अपरंपार,
तेरे चरणों में ब्रजवासियों का संसार।
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