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प्रह्लाद भक्त की कहानी: भक्ति की महान कथा

प्रह्लाद भक्त

प्रह्लाद भक्त की कहानी: भक्ति की महान कथा

प्रह्लाद भक्त की कहानी

अत्याचारी राजा हिरण्यकश्यप  अपने आप को देवताओं से भी श्रेष्ठ मानता था और उसने अपने साम्राज्य में भगवान विष्णु की पूजा पर पूर्ण प्रतिबंध लगा रखा था। वह चाहता था कि सभी लोग उसकी पूजा करें और उसके अलावा किसी अन्य देवता की पूजा न करें। उसकी इस अधिनायकता ने पूरे राज्य को आतंकित कर दिया था।

राजा हिरण्यकश्यप की पत्नी रानी लक्ष्मी ने भगवान विष्णु की भक्ति की थी, और उनके पवित्र आशीर्वाद से उनके घर एक पुत्र का जन्म हुआ, जिसका नाम प्रह्लाद रखा गया। प्रह्लाद के जन्म से ही उसकी भक्ति की कहानियाँ फैलने लगीं। वह बहुत ही छोटे उम्र से ही भगवान विष्णु के प्रति गहरी भक्ति रखता था और उनकी पूजा में मग्न रहता था।

जब प्रह्लाद भक्त ने देखा कि उसके पिता, राजा हिरण्यकश्यप, भगवान विष्णु के प्रति शत्रुता रखते हैं और उनकी पूजा पर पाबंदी लगा चुके हैं, तो उसने अपने पिता के आदेशों की अनदेखी की और भगवान विष्णु की पूजा करता रहा। उसकी भक्ति की शक्ति इतनी प्रबल थी कि उसने हर कठिनाई को भक्ति की अग्नि में तप कर स्वीकृत कर लिया।

राजा हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद भक्त के इस रवैये को बर्दाश्त नहीं किया। वह अत्यंत क्रोधित हुआ और उसने प्रह्लाद को अपनी पूजा और भक्ति छोड़ने के लिए कई बार समझाया, लेकिन प्रह्लाद भक्त का भक्ति का संकल्प अडिग रहा। राजा ने प्रह्लाद भक्त को विभिन्न तरीकों से सजा देने की कोशिश की, लेकिन भगवान विष्णु ने हर बार उसकी रक्षा की।

प्रह्लाद भक्त की कहानी

पहली सजा के रूप में, राजा ने आदेश दिया कि प्रह्लाद को एक ऊँची चट्टान से नीचे फेंका जाए। लेकिन भगवान विष्णु ने अपने भक्त की रक्षा की और प्रह्लाद सुरक्षित रूप से नीचे आ गया। इसके बाद, हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को गर्म तेल के बर्तन में डालने का आदेश दिया, लेकिन विष्णु की कृपा से वह भी सुरक्षित रहा।

प्रह्लाद भक्त की कहानी

जब सभी प्रयास विफल हो गए, तो हिरण्यकश्यप ने सोचा कि अब केवल एक अंतिम उपाय बचा है। उसने प्रह्लाद से पूछा कि क्या भगवान विष्णु उस पत्थर में भी हैं जो महल की दीवार में जड़ा हुआ था। प्रह्लाद ने बिना किसी हिचकिचाहट के उत्तर दिया कि भगवान विष्णु हर जगह मौजूद हैं, यहाँ तक कि उस पत्थर में भी।

हिरण्यकश्यप ने गुस्से में आकर आदेश दिया कि उस पत्थर को तोड़ा जाए। जैसे ही पत्थर टूटा, भगवान विष्णु ने नरसिंह अवतार लिया, जो आधे मानव और आधे शेर के रूप में प्रकट हुए। यह अवतार विशेष रूप से हिरण्यकश्यप के अहंकार और दुष्टता को समाप्त करने के लिए था।

प्रह्लाद भक्त की कहानी

नरसिंह ने हिरण्यकश्यप को हराया और उसे उसकी शक्ति का यथार्थ अनुभव कराया। प्रह्लाद को उसकी भक्ति और साहस के लिए पुरस्कार के रूप में राज्य की गद्दी सौंप दी गई। प्रह्लाद ने एक न्यायपूर्ण और भक्तिपूर्ण शासक के रूप में शासन किया, और उसके शासनकाल में प्रजा ने सुख और शांति का अनुभव किया।

प्रह्लाद की कहानी भक्ति, साहस और ईश्वर की अनन्य कृपा की अद्भुत मिसाल प्रस्तुत करती है। यह दिखाती है कि सच्ची भक्ति और समर्पण के साथ किसी भी कठिनाई का सामना किया जा सकता है और हर संकट का समाधान ईश्वर की सहायता से संभव है। प्रह्लाद की कथा यह सिखाती है कि भक्ति में शक्ति होती है और भक्ति से किसी भी बाधा को पार किया जा सकता है।

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